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मुर्गा और कौवा क्यों जल्दी उठते हैं? ब्रह्माजी धरती का भ्रमण करने आते हैं। पूरा जंगल उनका भव्य स्वागत करता है, पर मुर्गा और कौवा सोते रहते हैं। ब्रह्माजी नाराज होकर दोनों को सजा देते हैं – मुर्गा को हर सुबह 4 बजे कुकड़ू-कूं करना और कौवे को मेहमान आने की खबर देना। ये मजेदार कहानी बताती है कि आज भी दोनों अपना दंड भुगत रहे हैं!
चलो, अब पढ़ते हैं ये हंसते-हंसते सीख देने वाली प्यारी कहानी...
बहुत पुराने समय की बात है। ब्रह्माजी को अचानक धरती घूमने का मन हुआ। स्वर्ग में हल्ला मच गया – “ब्रह्माजी आ रहे हैं!” खबर जंगल तक पहुँची। शेर चाचा ने फरमान जारी किया, “सारे जानवर तैयार रहो! सुबह 5:30 बजे लाइन में खड़े होकर मालाएँ-फल लेकर स्वागत करना है। कोई अनुपस्थित हुआ तो खैर नहीं!”
हाथी ने सूंड से ढोल पीटा, हिरण दौड़-दौड़कर खबर पहुँचाने लगे। बंदर ऊँचे पेड़ पर चढ़कर चिल्लाने लगे, “सब तैयार हो जाओ!” सबने फूलों की मालाएँ गूंथीं, शहद और फल जमा किए।
सुबह ठीक 5:30 बजे ब्रह्माजी अपने हंस रथ पर आए। दोनों तरफ जानवरों की कतारें – हाथी फूल बरसा रहे थे, खरगोश मालाएँ लटका रहे थे। ब्रह्माजी खुश, मालाएँ उतार-उतारकर बच्चों पर फेंकने लगे।
अचानक ब्रह्माजी ने शेर चाचा से पूछा, “अरे वनराज, सब तो हैं, पर मुर्गा भाई और कौवे भाई कहाँ हैं?”
शेर चाचा ने इधर-उधर देखा – सचमुच गायब! ब्रह्माजी का मूड खराब, “इन्हें अभी के अभी हाजिर करो!”
हाथी दौड़ा। मुर्गे को पेड़ के नीचे सोते पकड़ा, कौवे को घोंसले में खर्राटे लेते उठाया। दोनों घसीटते हुए लाए गए।
ब्रह्माजी गुस्से में बोले, “सारी दुनिया स्वागत कर रही है, तुम दोनों सो रहे थे?”
मुर्गा आँखें मलते हुए बोला, “अरे बाबा, नींद ही नहीं खुली। सुबह जल्दी कौन उठता है?” कौवा खर्राटे लेते हुए बोला, “आप कौन? मैं क्यों उठूँ? मुझे क्या पता आप कौन हैं!”
ब्रह्माजी का पारा सातवें आसमान पर। एक मंत्र फूँका – दोनों वहीँ जम गए। पैर पत्थर जैसे!
दोनों चिल्लाए, “हे प्रभु! गलती हो गई! माफ कर दो, बच्चे भूखे मर जाएँगे!”
ब्रह्माजी बोले, “ठीक है, सजा तो भुगतोगे।”
मुर्गे से कहा, “आज से हर सुबह 4 बजे उठकर कुकड़ू-कूँ करना। सारी दुनिया को जगाना।” मुर्गा रोने लगा, “इतनी सुबह?” ब्रह्माजी हँसे, “लोग तारीफ करेंगे! बच्चे गीत गाएँगे – ‘मुर्गा बोला कुकड़ू कूँ, अब तो आँखें खोलो तू!’”
फिर कौवे की बारी। ब्रह्माजी बोले, “तू छतों पर बैठकर कांव-कांव करना। जहाँ मेहमान आने वाले हों, पहले खबर देना – ताकि मालिक तैयार हो या ताला लगाकर भाग जाए!”
कौवा बोला, “बस इतना ही?” ब्रह्माजी – “हाँ, और लोग कहेंगे – ‘कौवा बोला कांव-कांव, आज घर में मेहमान!’”
दोनों बोले, “जो आज्ञा प्रभु!” ब्रह्माजी ने दूसरा मंत्र फूँका – दोनों फिर चलने-फिरने लगे।
कहानी का विस्तार:
तब से आज तक मुर्गा सुबह 4 बजे गला फाड़ता है और कौवा छत पर बैठकर मेहमान की खबर देता है। बच्चे आज भी गाते हैं – “मुर्गा बोला कुकड़ू कूँ, सोने वाले अब जागो तू!”
(वैसे ब्रह्माजी की ऐसी मजेदार कहानियाँ पुराणों में भरी पड़ी हैं – और जानना हो तो यहाँ देखो: ब्रह्मा – विकिपीडिया)
सीख: दोस्तों, कभी घमंड मत करो और बड़ों का सम्मान करना मत भूलो। नहीं तो मुर्गा-कौवा की तरह सजा भुगतनी पड़ सकती है – पर अच्छी बात ये है कि सजा भी कभी-कभी मजेदार काम बन जाती है!
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